“ एक राष्ट्र, एक चुनाव “

 भारत का लोकतांत्रिक ढांचा अपनी जीवंत चुनावी प्रक्रिया के आधार पर फल-फूल रहा है और  नागरिकों को हर स्तर पर शासन को सक्रिय रूप से आकार देने में सक्षम बनाता है। स्वतंत्रता के बाद से अब तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के 400 से अधिक चुनावों ने निष्पक्षता और पारदर्शिता के प्रति भारत के चुनाव आयोग की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है। हालाँकि, अलग-अलग और बार-बार होने वाले  चुनावों की प्रकृति ने एक अधिक कुशल प्रणाली की आवश्यकता पर चर्चाओं को जन्म दिया है। इससे "एक राष्ट्रएक चुनाव" की अवधारणा में रुचि फिर से जग गई है।

हाल ही में सरकार ने लोकसभा में दो संविधान संशोधन विधेयकों "एक राष्ट्र, एक चुनाव" –‘129वाँ संविधान संशोधन विधेयक ,2024 ’ और ‘केंद्रशासित प्रदेश कानून संशोधन विधेयक,2024’ को प्रस्तुत करके एक राष्ट्र, एक चुनाव को लागू करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है।

विधेयक की मुख्य विशेषताएं

  • एक राष्ट्र,एक चुनाव –129वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2024 : यह विधेयक संविधान में अनुच्छेद  82A  ( 1–6 ) जोड़ने का प्रस्ताव करता है , ताकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को एकसमान करने की व्यवस्था की जा सके, जैसा कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा सिफारिश की गई है।

  • अनुच्छेद 82 (1–6 ) : अनुच्छेद 82A (1) में राष्ट्रपति द्वारा आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तिथि में प्रस्तावित परिवर्तनों को लागू करने के लिए समय–सीमा का प्रावधान किया गया है, जिसे "नियत तिथि ( Appointed date ) ” के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है।
  • अनुच्छेद 82A (2) में कहा गया है कि नियत तिथि के बाद और लोकसभा का पूर्ण कार्यकाल समाप्त होने के पहले निर्वाचित सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाएगा।
  • अनुच्छेद 82A(3) में कहा गया है कि भारत का निर्वाचन आयोग लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराएगा।
  • अनुच्छेद 82A (4) एक साथ चुनावों को लोकसभा और सभी विधानसभाओं के एक साथ गठन के लिए आयोजित आम चुनाव के रूप में परिभाषित करता है।
  • अनुच्छेद 82A (5) का उद्देश्य भारत के निर्वाचन आयोग को लोकसभा चुनाव के साथ किसी विशेष विधानसभा चुनाव न कराने का विकल्प प्रदान करना है। भारत का निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति को किसी विधानसभा के लिए बाद में चुनाव कराने की अनुमति देने हेतु आदेश जारी करने की सलाह दे सकता है।
  • अनुच्छेद 82A (6) में कहा गया है कि यदि किसी विधानसभा का चुनाव स्थगित कर दिया जाता है तो उस विधानसभा का पूर्ण कार्यकाल भी आम चुनाव में निर्वाचित लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाएगा।

अनुच्छेद 83 और 172में संशोधन:  विधेयक के अनुसार , यदि लोकसभा अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती है, तो अगली लोकसभा केवल शेष अवधि तक ही कार्य करेगी, जिसे "विघटन की तिथि और पहली बैठक की तिथि से पांच वर्ष के बीच की अवधि" के रूप में परिभाषित किया गया है। इसका अर्थ यह है कि सदन के पूर्ण कार्यकाल तक चलने के बाद भी, जो विधेयक अभी भी लंबित है, उसकी समय सीमा समाप्त हो जाएगी।
राज्य विधानसभाओं के लिए अनुच्छेद 172में संशोधन प्रस्तावित किया गया है, जो विधानसभाओं की अवधि को नियंत्रित करता है। यदि किसी राज्य विधानसभा को उसका कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही भंग कर दिया जाता है, तो पिछली विधानसभा के शेष कार्यकाल के लिए चुनाव कराए जाएंगे।

अनुच्छेद 372 में संशोधन :  विधेयक में अनुच्छेद 372 में संशोधन प्रस्तावित है, जिसमें “निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन” के बाद एक साथ चुनाव कराने को शामिल किया जाएगा, जिससे राज्य विधानसभा चुनावों पर संसद की शक्ति का विस्तार होगा। इस विधेयक में स्थानीय निकायों और नगर पालिकाओं के चुनाव को शामिल नहीं किया गया है।

केंद्रशासित प्रदेश कानून संशोधन विधेयक 2024 : विधेयक का उद्देश्य संघ राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम , 1962 की धारा 5, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन अधिनियम , 1991की धारा 5 तथा जम्मू – कश्मीर  पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 17 में संशोधन करना है, ताकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकें।

भारत में चुनाव से संबंधित संवैधानिक प्रावधान 

  1. भारत xv ( अनुच्छेद 324–329 ) : यह चुनाव और उनसे संबंधित मामलों के लिए आयोग की स्थापना के प्रावधान से संबंधित है।
  2. अनुच्छेद 342 : यह निर्वाचन आयोग को संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों की संपूर्ण प्रक्रिया का पर्यवेक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण करने का अधिकार देता है।
  3. अनुच्छेद 325 : यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सभी चुनावों के लिए एकल निर्वाचक नामावली की स्थापना का प्रावधान करता है।
  4. अनुच्छेद 326 : यह निर्दिष्ट करता है कि लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार पर आधारित होंगे।
  5. अनुच्छेद 82 और 170 : ये निष्पक्ष प्रतिनिधत्व सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन अनिवार्य किए जाने से संबंधित है।
अनुच्छेद 172 : इसके अनुसार प्रत्येक राज्य की विधानसभा , यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो , अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से पांच वर्ष तक बनी रहेगी।

एक राष्ट्र , एक चुनाव ’ पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट 

समिति का गठन और उद्देश्य : पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति का गठन केंद्र सरकार द्वारा सितम्बर 2023 में किया गया था।

समिति को लोकसभा , राज्य विधानसभाओं तथा स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराए जाने की व्यावहार्यता की जांच करने का कार्य सौंपा गया था।

 एक साथ चुनाव कराए जाने के फायदे : समिति ने स्पष्ट किया कि बार –बार  चुनाव कराए जाने से अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न होती है, जबकि एक साथ चुनाव कराए जाने स्थिर कोई सुनिश्चित होगा और व्यवधान कम होंगे। इसके अतिरिक्त , एक साथ चुनाव कराए जाने से लागत में भी कमी आने और मतदाता की सहभागिता बढ़ने की उम्मीद है।

निर्वाचक नामावली प्रबंधन :  निर्वाचन आयोग को सुव्यस्थित करने के लिए समिति ने राज्य निर्वाचन आयोगों के परामर्श से भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार एकल निर्वाचक नामावली के अंगीकरण का सुझाव दिया।


एक साथ चुनाव कराए जाने से संबंधित चुनौतियां 

बुनियादी ढांचे का विकास :  एक साथ चुनाव कराए जाने की जटिलताओं से निपटने के लिए तकनीकी बुनियादी ढांचे की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
     इसमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ( EVM) वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल्स (VVPAT) का प्रभावी परिनियोजन और प्रबंधन शामिल हैं।
     वर्ष 2024 के आम चुनावों में, समग्र देश के 1.05 मिलियन मतदान केंद्रों पर लगभग 1.7 मिलियन कंट्रोल यूनिट्स और 1.8 मिलियन VVPAT प्रणालियों का परिनियोजन किया गया था।
विधिक चुनौतियां  :  किसी भी संशोधन और एक साथ चुनाव क्रियान्वित करने की प्रक्रिया को विधिक चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है तथा संवैधानिक प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक जांच की आवश्यकता हो सकती है।

आगे की राह 

विधिक स्पष्टता :  एक साथ चुनाव कराने के लिए स्पष्ट निर्देश स्थापित करना , मतदाता पंजीकरण के लिए कार्यक्रम और प्रक्रियाओं का विवरण देना।
चुनावी बुनियादी ढांचे को मजबूत करना : कोविंद समिति की सिफारिश के अनुसार, एक ऐसी पंजीकृत मतदाता सूची प्रणाली विकसित की जानी चाहिए, जो सरकार के तीनों स्तरों लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए उपयोगी हो, ताकि दोहराव एवं त्रुटियों को कम किया जा सके।



  




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