" किसी विचार से सहमत हुए बिना उस पर विचार करने की क्षमता शिक्षित होने की एक पहचान है।"
( अरस्तु )
दुनिया के महान विचारकों तथा महान दार्शनिक में से एक अरस्तु ने शिक्षा और
बौद्धिकता को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप मे देखा था जो व्यक्ति को स्वतंत्र रूप
से विचार करने और सत्य तक पहुंचने में सक्षम बनाती है।
उनका यह कथन," किसी विचार से सहमत हुए बिना उस पर विचार करने की क्षमता शिक्षित होने की एक पहचान है" , शिक्षा की गहराई और सोच की परिपक्वता को परिभाषित करता है। उनके अनुसार, एक शिक्षित व्यक्ति की विशेषता यह होनी चाहिए कि वह बिना किसी पूर्वाग्रह के किसी विचार को सुन सके, समझ सके और उसके सभी पक्षों पर तटस्थ होकर विचार कर सके चाहे वह विचार उसके व्यक्तित्व से मेल खाता हो या नहीं। वास्तव में यह कथन आज के युग में विचारों की स्वतंत्रता, सहिष्णुता और बौद्धिकता के महत्व को समझने का एक प्रेरणा स्रोत है।यह कथन हमें यह सिखाता है कि असहमति और विविधता न केवल स्वीकार्य है बल्कि यह समाज के विकास तथा प्रगति के लिए आवश्यक है। उक्त कथन का मूल भाव यह है कि हमें अपने भीतर एक ऐसा दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए जो न केवल अपने विचारों को सुदृढ करे, बल्कि दूसरों के विचारों को समझने और उनका सम्मान करने की क्षमता भी दे। यही एक शिक्षित व्यक्ति की पहचान है।
विचार करने की क्षमता और शिक्षित होने की पहचान आपस में गहराई से जुड़ी हुईं हैं। सच्चा शिक्षित व्यक्ति वही होता है जो केवल किताबों का ज्ञान नहीं रखता है बल्कि सोचने, समझने और सही निर्णय लेने में कुशल होता है। विचार मन में उत्पन्न होने वाली वह मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी विषय, वस्तु, घटना, अनुभव या समस्या पर मंथन कर उसकी समीक्षा करके, उससे संबंधित अवधारणाओं या निष्कर्षों तक पहुंचता है। यह क्षमता किसी भी व्यक्ति की बुद्धिमत्ता का मापदंड है। इस अर्थ में एक शिक्षित व्यक्ति वह होता है जिसने केवल औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की हो बल्कि ज्ञान को समझने उसका उचित उपयोग करने और नैतिक मूल्यों का पालन करने की योग्यता भी विकसित की हो।
अरस्तु का कथन हमें यह समझाने का प्रयास करता है कि सच्ची शिक्षा का उद्देश्य केवल तथ्यों को रटना नहीं बल्कि बौद्धिकता को विकसित करना है। एक शिक्षित व्यक्ति का मस्तिष्क खुले मंच की तरह है जहां वह किसी भी विचार को बिना किसी पूर्वाग्रह के जगह देता है। सहमति या असहमति, किसी भी विचार का निष्कर्ष होता है, लेकिन उस पर विचार करने की प्रक्रिया शिक्षा का सार है।
हमारे समाज में अक्सर विचारधाराओं का टकराव देखा जाता है। यह टकराव इसलिए होता है क्योंकि लोग बिना समझे या बिना विश्लेषण किए विचारों को खारिज कर देते हैं। एक शिक्षित समाज वही है जहां लोग स्वतन्त्रता से विचारों का आदान –प्रदान करते हैं। विचारों का मूल्यांकन करना और उन्हें समझना ही सच्ची शिक्षा की पहचान है।
आज के बहुलवादी समाज में यह क्षमता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और विचारधाराओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है कि हम दूसरों के विचारों को समझें, भले ही हम उनसे सहमत न हों। व्यक्ति के पूर्वाग्रह का कारण धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेद, राजनीतिक ध्रुवीकरण, सीमित शिक्षा तथा व्यक्तिगत अनुभव आदि हो सकते हैं। लोगों के विचार अक्सर उनके धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों से प्रभावित होते हैं। इसी तरह राजनीति में विचारों का समर्थन या विरोध प्रायः दलगत आधार पर होता है न कि तार्किकता के आधार पर।
अरस्तु के कथन का आधुनिक संदर्भ – आज का युग सूचना और विचारों की अधिकता का है। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने विचारों के आदान –प्रदान को जितना सरल बनाया है उतना ही यह मिथ्या जानकारी तथा ध्रुवीकरण को भी बढ़ावा देता है। ऐसे समय मे अरस्तु का यह कथन और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है। सूचना की अधिकता के कारण आज के समय मे व्यक्ति तक असंख्य विचार और सूचनाएं पहुंचती हैं। इन विचारों का निष्पक्ष मूल्यांकन करना एक बड़ी चुनौती है ।
उदाहरण के लिए, हिंसा, असमानता या मानवाधिकारों के हनन को बढ़ावा देने वाले विचारों पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक नहीं है । कई बार किसी विचार पर सहमति के बिना विचार करने से व्यक्ति अनजाने में उस विचार से प्रभावित हो सकता है। यह विशेष रूप से युवाओं और कमजोर मानसिकता वाले व्यक्तियों के लिए खतरनाक है। यह सत्य है कि विचारों का आदान प्रदान विकास के लिए आवश्यक है, परन्तु हर विचार पर चिंतन करना शिक्षित होने की पहचान तो नहीं हो सकती।
अरस्तु का उपरोक्त कथन बौद्धिक विकास की ओर इशारा करता है, लेकिन इसके अंधाधुंध पालन से कई व्याहारिक और नैतिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य प्रासंगिक और नैतिक विचारों को पहचानना है तथा उन पर कार्य करना है। अतः यह कहा जा सकता है कि किसी विचार पर सरलता से सहमत हुए बिना उसके कारणों, तथ्यों और प्रभावों को समझते हुए उस पर विचार करने की क्षमता ही सच्ची शिक्षा का परिचायक है।