भारतीय अर्थव्यवस्था
चाइना प्लस वन
चर्चा में क्यों?
भारत के पास चाइना प्लस वन रणनीति का लाभ उठाने तथा वैश्विक विनिर्माण के क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने का अवसर है।
- हालांकि चीन के निर्यात की स्थिति सुदृढ़ बनी हुई है किंतु भारत का वृहद् घरेलू बाज़ार, कम श्रम लागत और विकास की संभावना इसे चीन का एक आकर्षक विकल्प बनाती है।
चाइना+1 रणनीति क्या है?
- परिचय:
- यह कंपनियों की वैश्विक प्रवृत्ति को संदर्भित करता है जिसमें कंपनियाँ चीन के अतिरिक्त अन्य देशों में अपने परिचालन इकाई स्थापित कर अपने विनिर्माण और आपूर्ति शृंखलाओं का विस्तार करते हैं।
- इस दृष्टिकोण का उद्देश्य विशेष रूप से भू-राजनीतिक तनाव और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों को दृष्टिगत रखते हुए किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता के कारण होने वाले जोखिमों को कम करना है।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में चीन का प्रभुत्व:
- विगत कुछ दशकों से चीन वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं का केंद्र रहा है जिससे इसे "वर्ल्ड्स फैक्ट्री" की संज्ञा दी जाती है। यह उत्पादन के अनुकूल कारकों और सुदृढ़ व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र के कारण संभव हुआ है।
- 1990 के दशक में चीन की ओर रुख:
- 1990 के दशक में अमेरिका और यूरोप की बड़ी विनिर्माण इकाइयों ने कम विनिर्माण लागत तथा वृहद् घरेलू बाज़ार तक पहुँच के कारण चीन में अपना उत्पादन करना शुरू किया।
- महामारी के दौरान व्यवधान:
- कोविड-19 महामारी से कई अर्थव्यवस्थाओं में गंभीर व्यवधान उत्पन्न हुए। बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समय के साथ महामारी से उबरने के पश्चात् मांग में अचानक वृद्धि हुई। हालाँकि चीन की ज़ीरो-कोविड नीति के परिणामस्वरूप औद्योगिक लॉकडाउन जारी रहा जिससे आपूर्ति शृंखला और कंटेनर की उपलब्धता प्रभावित हुई।
- चाइना+1 रणनीति की उत्पत्ति:
- चीन की ज़ीरो-कोविड नीति, आपूर्ति शृंखला व्यवधान, माल ढुलाई की उच्च दरों और लीड हेतु लंबे समयावधि सहित कई कारकों के परिणामस्वरूप कई वैश्विक कंपनियों को "चाइना-प्लस-वन" रणनीति अपनाने के लिये प्रेरित किया।
- इसमें एशिया के भारत, वियतनाम, थाईलैंड, बांग्लादेश और मलेशिया जैसे अन्य विकासशील देशों में कंपनियों द्वारा अपनी आपूर्ति शृंखला निर्भरता में विविधता लाने के उद्देश्य से वैकल्पिक विनिर्माण इकाइयों की स्थापना करना शामिल है।
- चीन की ज़ीरो-कोविड नीति, आपूर्ति शृंखला व्यवधान, माल ढुलाई की उच्च दरों और लीड हेतु लंबे समयावधि सहित कई कारकों के परिणामस्वरूप कई वैश्विक कंपनियों को "चाइना-प्लस-वन" रणनीति अपनाने के लिये प्रेरित किया।
भारत के लिये विदेशी निवेश आकर्षित कर पाने की क्या संभावनाएँ हैं?
- जनसांख्यिकीय लाभ और उपभोग शक्ति:
- विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023 में भारत की 28.4% जनसंख्या की आयु 30 वर्ष से कम है जबकि चीन में यह आँकड़ा 20.4% का है, जो कार्यबल और उपभोक्ता बाज़ार को आगे बढ़ा रही है। इससे उपभोग, बचत और निवेश को बढ़ावा मिलता है, जिससे भारत एक संभावित मल्टी-ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तथा वैश्विक कंपनियों के लिये आकर्षक बाज़ार के रूप में स्थापित होता है।
- को बढ़ावा मिलता है, जिससे भारत एक संभावित मल्टी-ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तथा वैश्विक कंपनियों के लिये आकर्षक बाज़ार के रूप में स्थापित होता है।
- लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और बुनियादी ढाँचे का लाभ:
- वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्द्धी देशों की तुलना में भारत की कम श्रम और पूंजी लागत इसके उत्पादन क्षेत्र को अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाती है।
- डेलॉयट द्वारा वर्ष 2023 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार भारत का औसत विनिर्माण वेतन चीन की तुलना में 47% कम है।
- इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) के माध्यम से सरकार द्वारा बुनियादी ढाँचे में किये गए महत्त्वपूर्ण निवेश का उद्देश्य विनिर्माण लागत को कम करना और रसद में 20% सुधार करना है, जिससे भारत के प्रति कंपनियों अधिक आकृष्ट होंगी।
- वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्द्धी देशों की तुलना में भारत की कम श्रम और पूंजी लागत इसके उत्पादन क्षेत्र को अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाती है।
- व्यावसायिक वातावरण और नीतिगत पहल:
- उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, कर सुधार और एफडीआई मानदंडों में ढील जैसे हालिया नीतिगत हस्तक्षेपों ने अनुकूल व्यावसायिक परिवेश तैयार किया है।
- मेक इन इंडिया पहल और व्यवसाय को सुगम बनाने के प्रयासों से विदेशी निवेश आकर्षित हो रहा है।
- डिजिटल कौशल और तकनीकी बढ़त:
- जनवरी 2024 तक भारत में 870 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं, जो इसकी आबादी का 61% है। इसके साथ ही गूगल और फेसबुक जैसी वैश्विक तकनीकी दिग्गजों तक पहुँच, जो चीन में उपलब्ध नहीं है, भारतीय युवाओं को डिजिटल लाभ देती है।
- रणनीतिक आर्थिक साझेदारी:
- संयुक्त अरब अमीरात के साथ CEPA व्यापार समझौते जैसी पहलों के माध्यम से उप-क्षेत्रीय साझेदारी और चीन के प्रभाव नियंत्रण पर भारत का ध्यान, उसके रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- इस विविधीकरण से 5 वर्षों के भीतर द्विपक्षीय व्यापार में 200% की वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे घरेलू हितों की रक्षा करते हुए नए बाज़ारों तक पहुँच सुनिश्चित होगी।
- गतिशील कूटनीति और वैश्विक प्रभाव:
- QUAD और I2U2 जैसे समूहों में भारत की सक्रिय भागीदारी साथ ही प्रमुख देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते, इसके आर्थिक संबंधों को मज़बूत करते हैं तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, वित्त एवं बाज़ार पहुँच के द्वार खोलते हैं।
- चूँकि भारत G20 और SCO में नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है, इसलिये वह वैश्विक व्यापार प्रवृत्तियों को आकार देने के लिये अपनी स्थिति का लाभ उठा सकता है।
- बड़ा घरेलू बाज़ार:
- भारत का 1.3 अरब लोगों का बड़े घरेलू बाज़ार, जिसकी आय में वृद्धि हो रही है, चीन के लिये एक आकर्षक विकल्प प्रस्तुत करता है।
- भारत की प्रति व्यक्ति GDP वर्ष 2018 और 2023 के बीच औसतन 6.9% बढ़ी है, जिससे एक बड़ा उपभोक्ता आधार तैयार हुआ है जो निरंतर आर्थिक विकास तथा बढ़े हुए वैश्विक व्यापार के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
भारत में चीन+1 रणनीति से कौन-से क्षेत्र लाभांवित होंगे?
- सूचना प्रौद्योगिकी/सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सेवाएँ (IT/ITeS): वर्ष 2024 NASSCOM रिपोर्ट में भारत को IT सेवाओं के निर्यात में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में मान्यता दी गई है, जिसे "मेक इन इंडिया" जैसी पहलों से बल मिला है, जिसका उद्देश्य देश को IT हार्डवेयर के लिये विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना है। इस प्रयास ने प्रमुख वैश्विक प्रौद्योगिकी फर्मों को आकर्षित किया है।
- फार्मास्यूटिकल्स: भारत का फार्मास्यूटिकल उद्योग, जिसका मूल्य वर्ष 2024 में 3.5 लाख करोड़ रुपए होगा और यह मात्रा के हिसाब से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उद्योग होगा।
- भारत "विश्व की फार्मेसी" के रूप में उभरा है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की लगभग 70% वैक्सीन आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है तथा अमेरिका की तुलना में 33% कम विनिर्माण लागत प्रदान करता है।
- धातु और इस्पात: भारत के समृद्ध प्राकृतिक संसाधन और विशेष इस्पात के लिये PLI योजना से वर्ष 2029 तक 40,000 करोड़ रुपए के निवेश आकर्षित करने की उम्मीद है, इसे एक प्रमुख इस्पात निर्यातक के रूप में स्थापित करती है। चीन द्वारा निर्यात छूट वापस लेने तथा प्रसंस्कृत इस्पात उत्पादों पर शुल्क लगाने से भारत का आकर्षण बढ़ता है।
C+1 परिदृश्य में भारत का प्रदर्शन कैसा है?
- आयात वृद्धि:
- विश्लेषित देशों में पश्चिमी देशों से भारत के आयात में दूसरी सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है, जिसकी वर्ष 2014 से 2023 तक चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (Compound Annual Growth Rate- CAGR) 6.3% रही है। वियतनाम और थाइलैंड ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है, जहां अमेरिका, ब्रिटेन तथा यूरोपीय संघ के आयत में CAGR 12.4% रहा है।
- प्रचुर संसाधन और रणनीतिक योजना होने के बावजूद, भारत को चीन से स्थानांतरित होने वाले व्यवसायों के बीच सकारात्मक प्रभाव पैदा करने में संघर्ष करना पड़ा है।
- वियतनाम और थाईलैंड अधिक आकर्षक गंतव्य के रूप में उभरे हैं।
- टैरिफ दरें:
- भारत में गैर-कृषि उत्पादों के लिए औसतन 14.7% की उच्च टैरिफ दरों ने पश्चिमी निवेशकों को हतोत्साहित किया है। विश्लेषण किए गए देशों में यह सबसे अधिक है।
- भारत में रिवर्स शुल्क संरचना (inverted duty structure), जिसमें आयातित कच्चे माल पर कर, अंतिम उत्पादों पर कर से अधिक है, भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्धात्मक को कम करता है।
विश्लेषण के अनुसार, एशिया में उत्पाद स्थानांतरित करने
या नई सुविधाओं में निवेश करने की योजना बना रही
कंपनियों के लिए भारत सबसे पसंदीदा स्थान के रूप में
उभरा है, जहां 28 कंपनियों ने रुचि दिखाई है, जबकि
वियतनाम के लिए यह आंकड़ा 23 है।
उल्लेखनीय बात यह है कि इन इच्छुक कंपनियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में है , एक ऐसा क्षेत्र जिसमे भारत पहले वियतनाम से पीछे था।
भारत की प्रतिस्पर्धामतकता में बाधा डालने वाले कारक:
- इज ऑफ डूइंग बिजनेस: भारत का विनियामक वातावरण जटिल है जिसमें नौकरशाही संबंधी बाधाएं और असंगत नीति कार्यान्वयन शामिल हैं, जो घरेलू तथा विदेशी दोनों निवेशकों को हतोत्साहित करते हैं।
- विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता : उच्च इनपुट लागत, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और कुशल श्रम की कमी के कारण भारत को
विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता में महत्वपूर्ण चुनौतियां का सामना करना पड़ रहा है।
- बुनियादी ढांचे की कमियां: खराब परिवहन,रसद और ऊर्जा बुनियादी ढांचे में परिचालन लागत बढ़ जाती है तथा व्यावसायिक दक्षता कम हो जाती है।
- श्रम बाजार की कठोरता: प्रतिबंधात्मक श्रम कानून, विशेष रूप से संगठित क्षेत्र में, लचीलेपन और रोजगार सृजन में बाधा डालते है।
- कर संरचना: कई अप्रत्यक्ष करो सहित जटिल कर व्यवस्था, व्यापार करने की लागत में वृद्धि करती है।
- भूमि अधिग्रहण की चुनौतियां:औद्योगिक परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की जटिल प्रक्रिया से निवेश में विलंब होता है और लागत बढ़ जाती है।
आगे की राह
- लक्षित प्रोत्साहन एवं सब्सिडी।
- इज ऑफ डूइंग बिजनेस में वृद्धि करना ।
- विशिष्ट औद्योगिक कलस्टर विकसित करना।
- कौशल विकास में निवेश करना ।
निष्कर्ष
- C+1 अवसर भारत के लिए अपने विनिर्माण क्षेत्र की दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान करने तथा वैश्विक विनिर्माण महाशक्ति के रूप में उभरने के लिए विशेष अवसर प्रस्तुत करता है। प्रमुख बाधाओं को दूर करके और व्यापक रणनीति को लागू करके, भारत इस प्रवृत्ति का लाभ उठाकर सतत आर्थिक विकास एवं रोजगार सृजन को बढ़ावा दे सकता है। भारत के लिए अब C+1 क्षमता का लाभ उठाने और स्वयं को शीर्ष विनिर्माण गंतव्य के रूप में स्थापित करने का अवसर है।